women in Indian society Essay || भारतीय समाज में नारी का स्थान पर निबन्ध
"नारी तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत पग-पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में॥"
रूपरेखा:-
(1) प्रस्तावना
(2) प्राचीन भारतीय नारी
(3) मध्यकाल में नारी की स्थिति
(4) आधुनिक नारी
(5) उपसंहार
प्रस्तावना- सृष्टि के आदिकाल से ही नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। नारी सृजन की पूर्णता है। उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असम्भव है। समाज के रचना-विधान में नारी के माँ, प्रेयसी, पुत्री एवं पत्नी अनेक रूप हैं। वह सम परिस्थितियों में देवी है तो विषम परिस्थितियों में दुर्गा भवानी। वह समाज रूपी गाड़ी का एक पहिया है जिसके बिना समग्र जीवन ही पंगु है। सृष्टि चक्र में स्त्री-पुरुष एक-दूसरे के पूरक हैं।
मानव जाति के इतिहास पर दृष्टिपात करें तो ज्ञात होगा कि जीवन में कौटुम्बिक, सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, साहित्यिक, धार्मिक सभी क्षेत्रों में प्रारम्भ से ही नारी की अपेक्षा पुरुष का आधिपत्य रहा है। पुरुष ने अपनी इस श्रेष्ठता और शक्ति-सम्पन्नता का लाभ उठाकर स्त्री जाति पर मनमाने अत्याचार किये हैं। उसने नारी की स्वतन्त्रता का अपहरण कर उसे पराधीनबना दिया। सहयोगिनी या सहचरी के स्थान पर उसे अनुचरी बना दिया और स्वयं उसका पति, स्वामी, नाथ, पथ-प्रदर्शक और साक्षात् ईश्वर बन गया। इस प्रकार मानव जाति के इतिहास में नारी की स्थिति दयनीय बन कर रह गयी है। उसकी जीवन धारा रेगिस्तान एवं हरे-भरे बगीचों के मध्य से प्रतिपल प्रवाहमान है।
प्राचीन भारतीय समाज में नारी- जीवन के स्वरूप की व्याख्या करें तो हमें ज्ञात होगा कि वैदिक काल में नारी को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त था। वह सामाजिक, धार्मिक और आध्यात्मिक सभी क्षेत्रों में पुरुष के साथ मिलकर कार्य करती थी। रोमशा और लोपामुद्रा आदि अनेक नारियों ने ऋग्वेद के सूत्रों की रचना की थी। रानी कैकेयी ने राजा दशरथ के साथ युद्ध-भूमि में जाकर, उनकी सहायता की। रामायण काल (त्रेता) में भी नारी की महत्ता अक्षुण्ण रही। इस युग में सीता, अनुसुइया एवं सुलोचना आदि आदर्श नारी हुईं। महाभारत काल (द्वापर) में नारी पारिवारिक, सामाजिक एवं राजनीतिक गतिविधियों में पुरुष के साथ कन्धे से कन्धा मिलाकर चलने लगीं। इस युग में नारी समस्त गतिविधियों के संचालन की केन्द्रीय बिन्दु थी। द्रोपदी, गान्धारी और कुन्ती इस युग की शक्ति थीं।
मध्यकाल में नारी की स्थिति- मध्य युग तक आते-आते नारी की सामाजिक स्थिति दयनीय बन गयी। भगवान बुद्ध द्वारा नारी को सम्मान दिये जाने पर भी भारतीय समाज में नारी के गौरव का ह्रास होने लगा था। फिर भी वह पुरुष के समान ही सामाजिक कार्यों में भाग लेती थी। सहभागिनी और समानाधिकारिणी का उसका रूप पूरी तरह लुप्त नहीं हो पाया था। मध्यकाल में शासकों की काम-लोलुप दृष्टि से नारी को बचाने के लिए प्रयत्न किये जाने लगे। परिणामस्वरूप उसका अस्तित्व घर की चहारदीवारी तक ही सिमट कर रह गया। वह कन्या रूप में पिता पर, पत्नी के रूप में पति और माँ के रूप में पुत्र पर आश्रित होती चली गयी। यद्यपि इस युग में कुछ नारियाँ अपवाद रूप में शक्ति-सम्पन्न एवं स्वावलम्बी थीं; फिर भी समाज सामान्य नारी को दृढ़ से दृढ़तर बन्धनों में जकड़ता ही चला गया। मध्यकाल में आकर शक्ति स्वरूपा नारी 'अबला' बनकर रह गयी। मैथिलीशरण गुप्त के शब्दों में-
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आँचल में है दूध और आँखों में पानी।"
भक्ति काल में नारी जन-जीवन के लिए इतनी तिरस्कृत, क्षुद्र और उपेक्षित बन गयी थी कि कबीर, सूर, तुलसी जैसे महान कवियों ने उसकी संवेदना और सहानुभूति में दो शब्द तक नहीं कहे। कबीर ने नारी को 'महाविकार', 'नागिन' आदि कहकर उसकी घोर निन्दा की। तुलसी ने नारी को गँवार, शूद्र, पशु के समान ताड़न का अधिकारी कहा-
'ढोल गँवार शूद्र पशु नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।'
आधुनिक नारी- आधुनिक काल के आते-आते नारी चेतना का भाव उत्कृष्ट रूप से जाग्रत हुआ। युग-युग की दासता से पीड़ित नारी के प्रति एक व्यापक सहानुभूतिपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाने लगा। बंगाल में राजा राममोहन राय और उत्तर भारत में महर्षि दयानन्द सरस्वती ने नारी को पुरुषों के अनाचार की छाया से मुक्त करने को क्रान्ति का बिगुल बजाया। अनेक कवियों की वाणी भी इन दुःखी नारियों की सहानुभूति के लिए अवलोकनीय है। कविवर सुमित्रानन्दन पन्त ने तीव्र स्वर में नारी स्वतन्त्रता की माँग की-
मुक्त करो नारी को मानव, चिर वन्दिनी नारी को।
युग-युग की निर्मम कारा से, जननी, सखि, प्यारी को ॥"
आधुनिक युग में नारी को विलासिनी और अनुचरी के स्थान पर देवी, माँ, सहचरी और प्रेयसी के गौरवपूर्ण पद प्राप्त हुए। नारियों ने सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक एवं साहित्यिक सभी क्षेत्रों में आगे बढ़कर कार्य किया। विजयलक्ष्मी पण्डित, कमला नेहरू, सुचेता कृपलानी, सरोजिनी नायडू, इन्दिरा गाँधी, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि के नाम विशेष सम्मानपूर्ण हैं।
'स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत ने नारियों की स्थिति सुधारने के लिए अनेक प्रयत्न किये हैं। हिन्दू विवाह और कानून में सुधार करके उसने नारी और पुरुष को समान भूमि पर लाकर खड़ा कर दिया। दहेज विरोधी कानून बनाकर उसने नारी की स्थिति में और भी सुधार कर दिया। लेकिन सामाजिक एवं आर्थिक स्वतन्त्रता ने उसे भोगवाद की ओर प्रेरित किया है। आधुनिकता के मोह में पडकर वह आज पतन की ओर जा रही है।
उपसंहार- इस प्रकार उपर्युक्त वर्णन से हमें वैदिक काल से लेकर आज तक नारी के विविध रूपों और स्थितियों का आभास मिल जाता है। वैदिक काल की नारी ने शौर्य, त्याग, समर्पण, विश्वास एवं शक्ति आदि का आदर्श प्रस्तुत किया। पूर्व मध्यकाल की नारी ने इन्हीं गुणों का अनुसरण कर अपने अस्तित्व को सुरक्षित रखा। उत्तर-मध्यकाल में अवश्य नारी की स्थिति दयनीय रही, परन्तु आधुनिक काल में उसने अपनी खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः प्राप्त कर लिया है। उपनिषद, पुराण, स्मृति तथा सम्पूर्ण साहित्य में नारी की महत्ता अक्षुण्ण है। वैदिक युग में शिव की कल्पना ही 'अर्द्ध नारीश्वर' रूप में की गयी। मनु ने प्राचीन भारतीय नारी के आदर्श एवं महान रूप की व्यंजना की है। "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता....." अर्थात् जहाँ पर स्त्रियों का पूजन होता है वहाँ देवता निवास करते हैं। जहाँ स्त्रियों का अनादर होता है, वहाँ नियोजित होने वाली क्रियाएँ निष्फल हो जाती हैं। स्त्री अनेक कल्याण का भाजन है। वह पूजा के योग्य है। स्त्री घर की ज्योति है। स्त्री गृह की साक्षात् लक्ष्मी है। यद्यपि भोगवाद के आकर्षण में आधुनिक नारी पतन की ओर जा रही है, लेकिन भारत के जन-जीवन में यह परम्परा प्रतिष्ठित नहीं हो पायी है। आशा है भारतीय नारी का उत्थान भारतीय संस्कृति की परिधि में हो। वह पश्चिम की नारी का अनुकरण न करके अपनी मौलिकता का परिचय दे।
समाज में नारी का स्थान विषय पर 200-250 शब्दों में सारगर्भित निबंध लिखिए
रूपरेखा-
प्रस्तावना
भारतीय नारी का अतीत
मध्यकाल में भारतीय नारी
आधुनिक युग में नारी
पाश्चात्य प्रभाव एवं जीवन-शैली में परिवर्तन
उपसंहार
1. प्रस्तावना-
गृहस्थी रूपी रथ के दो पहिए हैं — नर और नारी। इन दोनों के सहयोग से ही गृहस्थ जीवन सफल होता है। इसमें नारी का घर के अंदर और पुरुष का घर के बाहर विशेष महत्व है।
ऋषियों ने नारी को अत्यंत आदर की दृष्टि से देखा है। नारी पुरुष की सहधर्मिणी, परामर्शदात्री, सहायिका, माता और सेविका सभी रूपों में पूज्य है।
मनु ने कहा है —
"यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता।"
अर्थात जहाँ नारियों का आदर होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं।
फिर भी भारत में नारी की स्थिति समय-समय पर उतार-चढ़ाव से गुजरी है।
2. भारतीय नारी का अतीत-
वेद और उपनिषदों के काल में नारी को पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त थी। वह पुरुष के समान विद्या प्राप्त कर शास्त्रार्थ करती थी।
उदाहरण:
गार्गी और मैत्रेयी विदुषी नारियाँ थीं।
भारती, मंडन मिश्र की पत्नी, स्वयं दार्शनिक थीं।
कैकेयी युद्धभूमि में जाने वाली वीरांगना के रूप में प्रसिद्ध है।
प्राचीन काल में नारी को विवाह का अधिकार, शिक्षा का अवसर और स्वतंत्र निर्णय की अनुमति प्राप्त थी। वह सामाजिक और धार्मिक दोनों कार्यों में सक्रिय भाग लेती थी।
3. मध्यकाल में भारतीय नारी-
मध्यकाल में नारी की स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई। मुसलमानों के आक्रमण और सामाजिक परतंत्रता के कारण स्त्रियों की स्वतंत्रता नष्ट हो गई।
बाल विवाह, पर्दा प्रथा, और सती प्रथा का प्रचलन हुआ।
शिक्षा और समाज में नारी की भूमिका सीमित हो गई।
गुप्त जी ने नारी की इस स्थिति पर कहा —
"अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी,
आंचल में है दूध और आँखों में पानी।"
नारी पुरुष की दासी बनकर रह गई और समाज में उसका अस्तित्व लगभग विलुप्त हो गया।
4. आधुनिक युग में नारी- अंग्रेजों के आगमन और शिक्षा के प्रसार से नारी चेतना का उदय हुआ।
राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर, और महर्षि दयानंद सरस्वती जैसे समाज सुधारकों ने सती प्रथा, बाल विवाह आदि कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन चलाए। महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता संग्राम में नारी को राष्ट्र सेवा में आगे लाया।
अब नारी शिक्षित, स्वावलंबी और आत्मनिर्भर हो चुकी है।
वह डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, अध्यापिका, वैज्ञानिक, जज, पुलिस अधिकारी और यहाँ तक कि प्रधानमंत्री तक बन चुकी है।
उदाहरण:
श्रीमती इंदिरा गांधी — भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री।
श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित — संयुक्त राष्ट्र महासभा की अध्यक्षा।
आज नारी को संपत्ति में अधिकार, शिक्षा में अवसर और समाज में समान स्थान प्राप्त है।
5. पाश्चात्य प्रभाव एवं जीवन-शैली में परिवर्तन- पश्चिमी सभ्यता के प्रभाव से भारतीय नारी के जीवन में बड़े परिवर्तन आए हैं। कई नारियाँ भौतिकता और फैशन की ओर झुकाव रखती हैं।
कवि पंत ने चेताया है —
"तुम सब कुछ हो फूल, लहर, विहगी, तितली, मर्जारी,
आधुनिके! कुछ नहीं अगर हो, तो केवल तुम नारी।"
लेखिका प्रेमकुमारी ‘दिवाकर’ ने कहा है —
"आधुनिक नारी ने बहुत कुछ प्राप्त किया है,
परंतु उसके भीतर का कुसंस्कार नहीं बदला है।"
अतः आधुनिक नारी को आत्मसंयम, संस्कार और सादगी बनाए रखनी चाहिए।
6. उपसंहार
नारी भारतीय संस्कृति की आधारशिला है। यदि वह अपनी भारतीयता, मर्यादा और सादगी बनाए रखे तो समाज की दिशा सही रहेगी।
उसे आत्मविश्वास, शिक्षा और योग्यता से अपने अधिकारों के प्रति सजग रहना चाहिए।
कवि प्रसाद ने नारी के पवित्र रूप को नमन करते हुए कहा है —
"नारी! तुम केवल श्रद्धा हो, विश्वास रजत-नभ-पग-तल में,
पीयूष-स्रोत-सी बहा करो, जीवन के सुन्दर समतल में।"
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FAQ (Frequently Asked Questions)
Q1. भारतीय समाज में नारी को क्या स्थान प्राप्त है?
👉 नारी को भारतीय समाज में पूजनीय और सम्माननीय स्थान प्राप्त है। वह परिवार और समाज की आधारशिला है।
Q2. प्राचीन काल में नारी की स्थिति कैसी थी?
👉 प्राचीन काल में नारी को उच्च स्थान प्राप्त था। वह शिक्षित और स्वतंत्र थी।
Q3. मध्यकाल में नारी की स्थिति क्यों गिर गई?
👉 पर्दा प्रथा, सती प्रथा और शिक्षा पर रोक जैसी कुरीतियों के कारण नारी की स्थिति कमजोर हो गई।
Q4. आधुनिक काल में नारी ने क्या प्रगति की है?
👉 आज नारी हर क्षेत्र में पुरुषों के समान कार्य कर रही है — राजनीति, शिक्षा, विज्ञान और खेल तक।
Q5. नारी सशक्तिकरण के लिए कौन-कौन सी सरकारी योजनाएँ हैं?
👉 “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ”, “महिला हेल्पलाइन”, “उज्ज्वला योजना”, “लाडली बहना योजना” आदि।
Q6. नारी सशक्तिकरण क्यों आवश्यक है?
👉 क्योंकि सशक्त नारी ही सशक्त परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण करती है।

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