प्रदूषण की समस्या पर निबंध 100 शब्द || Pradushan ki samasya par nibandh
प्रदूषण की समस्या || पर्यावरण प्रदूषण
"गंगा का निर्मल जल दूषित हो गया, आसमान जहरीली हवाओं से ओत-प्रोत है, वातावरण विषाक्त है। हवाओं में घुटन तथा ज़हर घुला है।"
रूपरेखा -
(1) प्रस्तावना,
(2) प्रदूषण का अर्थ एवं अभिप्राय,
(3) प्रदूषण के प्रकार,
(4) प्रदूषण की समस्या का वर्तमान रूप,
(5) प्रदूषण की समस्या को रोकने के उपाय,
(6) उपसंहार।
प्रस्तावना — विज्ञान की प्रगति ने मानव-जीवन को अद्भुत बढ़ावा दिया है, एवं कुछ अभिशाप भी दिए हैं। इन अभिशापों में एक है— प्रदूषण। प्रदूषण की समस्या ने पिछले कुछ वर्षों में इतना गंभीर रूप धारण कर लिया है कि इसकी वजह से दुनिया के वैज्ञानिक और विचारक गहरी चिंता में पड़ गए हैं। वैज्ञानिकों का विचार है कि इस समस्या का यदि शीघ्र ही कोई हल न खोजा गया तो सम्पूर्ण मानव जाति का विनाश सुनिश्चित है। प्रगति एवं भौतिकतावाद की अंधी दौड़ में पर्यावरण प्रतिपल दूषित हो रहा है तथा मानव जीवन संकट में पड़ चुका है।
प्रदूषण का अर्थ एवं अभिप्राय — प्रदूषण का अर्थ है— दोष उत्पन्न होना। इसी आधार पर प्रदूषण के विषय में वैज्ञानिक अभिप्राय है— वायु, जल एवं स्थल का भौतिक, रासायनिक एवं जैविक विश्लेषणों में अवांछनीय परिवर्तन होना, जिससे इनका उपयोग मनुष्य एवं अन्य जीवों के लिए हानिकर हो। जब वायु, पानी, मिट्टी, रोशनी, समुद्र, पहाड़, रेगिस्तान, जंगल और नदी आदि की स्वाभाविक स्थिति में दोष उत्पन्न हो जाता है, तब प्रदूषण की स्थिति बन जाती है। कोयला, पेट्रोलियम आदि के धुएं, प्राकृतिक भूचरों के अस्वाभाविक रूप से उत्पन्न धुएं और मलवा वातावरण को दूषित कर प्रदूषण की समस्या को जन्म देता है। प्रदूषण मनुष्य और सभी प्रकार के जीवधारियों तथा वनस्पतियों के लिए अत्यंत हानिकारक है।
प्रदूषण के प्रकार — प्रदूषण प्रमुखत: पाँच प्रकार का होता है —
(1) पर्यावरण प्रदूषण,
(2) जल-प्रदूषण,
(3) स्थल-प्रदूषण,
(4) ध्वनि-प्रदूषण और
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण।
(1) पर्यावरण प्रदूषण — पर्यावरण प्रदूषण को वातावरण प्रदूषण भी कहते हैं। वातावरण का अर्थ है — वायु का आवरण। हमारी धरती के ऊपर से वायु की एक बहुत मोटी परत से घिरी हुई है, जो कुछ मील के ऊपर तक फैली हुई होती है। यह वायु अनेक प्रकार की गैसों से मिलकर बनी है। यह शुद्ध वायु एवं निर्जीव गैसों का संतुलित मिश्रण है। इनके अनुपात में कोई भी अस्वाभाविक वृद्धि या कमी संतुलन को बिगाड़ देती है। मानव एवं अन्य जीवों के जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन अति आवश्यक है। यह गैस जीवों के जीवन के लिए उतनी ही आवश्यक है जितनी सांस लेना।
धरती पर यह गैस पेड़-पौधों द्वारा ग्रहण कर ली जाती है। पेड़-पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को सांस के रूप में ग्रहण करते हैं और ऑक्सीजन बाहर निकालते हैं। इस कारण वायुमंडल में इन दोनों गैसों का संतुलन बना रहता है। वायुमंडल में किसी कारण से जब कार्बन डाइऑक्साइड जैसी जहरीली गैसों का अनुपात आवश्यकता से अधिक हो जाता है, तो वातावरण प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। ईंधन के जलाने जाने से उत्पन्न धुएं वातावरण प्रदूषण का मुख्य कारण है।
पर्यावरण या वातावरण प्रदूषण सभी प्रकार के प्रदूषणों का मुख्य आधार और सर्वाधिक हानिकारक प्रदूषण है। विशेषकर गैसों की अधिकता के कारण धरती का वायुमंडल गरम हो जाता है और धरती के तापमान में वृद्धि हो जाती है। इससे ध्रुवीय बर्फ पिघलने लगती है और समुद्र का स्तर ऊँचा उठ जाता है। इससे तटीय शहरों के डूबने और बाढ़ आदि का खतरा बढ़ जाता है।
विषैली हवा में सांस लेने के कारण दमा, तपेदिक और फेफड़ों के कैंसर जैसे भयानक रोग उत्पन्न हो जाते हैं। मनुष्य की जीवन-शक्ति कम हो जाने के कारण अनेक प्रकार की महामारियाँ फैलने लगती हैं।
(2) जल-प्रदूषण — पानी के दूषित हो जाने को जल-प्रदूषण कहते हैं। जल में भिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थ एक निश्चित मात्रा में होते हैं, लेकिन जब ये मात्रा से अधिक हो जाएँ और जल में हानिकारक तत्वों की संख्या बढ़ जाती है, तब जल-प्रदूषण की समस्या उत्पन्न हो जाती है। जल में मल-मूत्र तथा कल-कारखानों द्वारा दूषित रासायनिक पदार्थों का विसर्जन जल-प्रदूषण उत्पन्न करता है।
जल-प्रदूषण होने से समुद्र, अर्थात खारे पानी और मीठे पानी का संतुलन बिगड़ जाता है। नदियों में बहते हुए हानिकारक रासायनिक तत्व समुद्र में पहुँचकर समुद्र के जंतुओं के लिए संकट उपस्थित कर देते हैं जिससे समुद्र का संतुलन बिगड़ जाता है। अशुद्ध जल के प्रयोग से अनेक प्रकार की संक्रामक बीमारियाँ हो जाती हैं और भूमि की उर्वरता कम हो जाती है।
(3) स्थल-प्रदूषण — मिट्टी में दोष उत्पन्न हो जाना स्थल-प्रदूषण कहलाता है। इसका अंतर्गत वायु और खाद-खाद्य आदि की कोई-कचरों और अन्य जानवरों के लिए हानिकारक है। डी.डी.टी. आदि तथा खेतों में रासायनिक खाद के प्रयोग से स्थल-प्रदूषण उत्पन्न होता है।
(4) ध्वनि-प्रदूषण — ध्वनि का असामान्य स्तर ध्वनि-प्रदूषण कहलाता है। मोटरकार, स्कूटर, हवाई जहाज आदि वाहनों, मशीनों के इंजनों के शोर तथा लाउडस्पीकर आदि से उत्पन्न होने वाला असहनीय शोर ध्वनि प्रदूषण का जन्म देता है। यह मनुष्य की पाचन-शक्ति पर भी प्रभाव डालता है। इससे ऊँचा सुनना, अनिद्रा और पागलपन तक जैसे रोग हो सकते हैं। जरूरत से ज्यादा शोर दिमागी तनाव को बढ़ाता है।
(5) रेडियोधर्मी प्रदूषण- परमाणु शक्ति के प्रयोग एवं परमाणु विस्फोटों से मलवे के रूप में रेडियोधर्मी कणों का विसर्जन होता है। यही रेडियोधर्मी प्रदूषण को उत्पन्न करता है। जब कोई परमाणु विस्फोट होता है तो बहुत गर्म किरणें निकलती हैं। वे वातावरण में भी रच-बस जाती हैं। उस स्थान की वायु विषैली हो जाती है जो आगे आने वाली संतति तक पर प्रभाव डालती है। इससे वायुमण्डल और मौसमों तक का सन्तुलन बिगड़ जाता है।
प्रदूषण की समस्या का वर्तमान रूप- प्रदूषण की समस्या आधुनिक औद्योगिक एवं वैज्ञानिक युग की देन है। इस समस्या का जन्म औद्योगिक क्रान्ति से हुआ। आज धरती पर लाखों कारखाने वातावरण में विषैली गैसों का विसर्जन कर उसे गन्दा बना रहे हैं। कारखानों और मोटर वाहनों से विसर्जित जहरीली गैसों के कारण पृथ्वी का वायुमण्डल गर्म होता जा रहा है। प्रदूषण अगर इसी तरह बढ़ता गया तो वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सन् 2100 तक वायुमण्डल में कार्बन डाइ-ऑक्साइड की मात्रा अब से चार गुना हो जायेगी जिससे पृथ्वी का तापमान लगभग 6° से. बढ़ जायेगा। ऐसी स्थिति में ध्रुवीय बर्फ पिघल जायेगी जिससे समुद्र तल ऊँचा हो जायेगा और अनेक समुद्रतटीय नगर डूब जायेंगे। बाढ़ें आयेंगी, धरती की उर्वरा शक्ति कम हो जायेगी और अनेक प्रकार के रोग तथा महामारियाँ फैलेंगी। 20वीं सदी के प्रारम्भ में परमाणु शक्ति के आविष्कार ने प्रदूषण के खतरे को चरम सीमा पर पहुँचा दिया है। पिछले 40 वर्षों के दौरान विश्व में लगभग 1200 परमाणु विस्फोट किये जा चुके हैं। इनके रेडियोधर्मी प्रदूषण से कितनी हानि हो चुकी है, कितनी हो रही है और भविष्य में कितनी हानि होगी, इसका अन्दाजा लगाना भी मुश्किल है। इन परमाणु विस्फोटों से ऋतुओं का सन्तुलन भी डगमगा गया है। मौसमों का बदलाव आदि इन परमाणु विस्फोटों का ही दुष्परिणाम है। इस प्रकार आज धरती का सारा वातावरण विषाक्त हो चुका है। कल-कारखानों से विसर्जित हानिकारक रासायनिक तत्त्व जल प्रदूषण उत्पन्न कर रहे हैं जिससे फसलों और जीवों में अनेक प्रकार के रोग पनप रहे हैं। मोटर वाहनों आदि के भयानक शोर ने आदमी का चैन हराम कर दिया है। कहने का तात्पर्य यह है कि प्रदूषण की समस्या आज अपनी चरमसीमा पर है। भारत जैसे विकासशील देश में तो यह समस्या और भी भयावह रूप धारण कर चुकी है।
प्रदूषण की समस्या की रोकथाम के उपाय- आज सारा विश्व प्रदूषण की समस्या से ग्रसित एवं चिन्तित है और हर देश इसकी रोकथाम में लगा हुआ है। ब्रिटेन, अमरीका, फ्रांस आदि विकसित देशों में तेज आवाज करने वाले वाहनों में ध्वनि नियन्त्रक यन्त्र लगाये गये हैं। कारखानों द्वारा विसर्जित हानिकारक रासायनिक तत्त्वों को ये देश नदियों में नहीं बहाते, बल्कि उन्हें नष्ट कर देते हैं। परमाणु विस्फोटों के प्रतिबन्ध और परिसीमा पर भी विश्व में विचार हो रहा है। दुर्भाग्य से भारत जैसे विकासशील देशों में अब भी प्रदूषण की रोकथाम की दिशा में कोई ठोस काम नहीं हो रहा है। हमारे यहाँ अब भी मल-मूत्र और रासायनिक मलवे को नदियों में बहा दिया जाता है। यहाँ की नदियों के किनारे स्थित स्थान जल-प्रदूषण की समस्या से बुरी तरह ग्रस्त हैं। अन्य प्रकार के प्रदूषण भी हमें आक्रान्त किये हुए हैं। भोपाल गैस काण्ड भी हमारे समक्ष एक चुनौती के रूप में उपस्थित है जिसमें अनेक लोग मौत की गोद में सो गये।
इस समस्या के निराकरण का सर्वोत्तम साधन वनों की रक्षा और वृक्षारोपण है, क्योंकि पेड़-पौधों से ही ऑक्सीजन और कार्बन-डाइऑक्साइड का सन्तुलन बना रहता है। वृक्षारोपण के अतिरिक्त परमाणु विस्फोटों पर प्रतिबन्ध, कारखानों की चिमनियों में फिल्टर का प्रयोग, मोटर वाहनों में ध्वनि नियन्त्रक यन्त्रों का प्रयोग, मल-मूत्र और कचरे आदि को नदियों में बहाने के स्थान पर उन्हें अन्य तरीकों से नष्ट कर देना आदि वे साधन हैं, जिनसे प्रदूषण की समस्या पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है।
उपसंहार- प्रदूषण की समस्या आज एक देश की समस्या नहीं, सम्पूर्ण विश्व तथा समूची मानव जाति की है। यदि समय रहते इस समस्या को हल करने के लिए सामूहिक प्रयास नहीं किये गये तो सम्पूर्ण मानव जाति का भविष्य अन्धकारमय है। भगीरथी प्रयासों के बावजूद इस समस्या के निराकरण के आसार ही दिखाई नहीं दे रहे हैं। पर्यावरण की स्वच्छता में ही मानव की सुख एवं शान्ति निहित है।
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